भारतीय इतिहास की पाठ्य पुस्तकें पता नही क्यों भारत के वीर एवम वीरांगनाओं की कथाएँ कहते हुए झिझकती है।हमारे इतिहास की पुस्तकों में हमारे सच्चे नायकों की तुलना में विदेशी आक्रांताओं की कहानियों को अधिक विस्तार से दर्शाया गया है। हमारे इतिहास में सम्पूर्ण भारत के सभी भौगोलिक क्षेत्रो में ऐसे अनेक वीर एवम वीरांगनायें हुए है जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी दुश्मन को नाकों चने चबाने को मजबूर कर दिया था। हमारे पूर्वोत्त्तर भारत के इतिहास में भी ऐसे अनेक नायक एवम नायिकाएं हुई है जिनकी वीरता की अप्रीतम कहानियां है और ऐसी ही एक नायिका थी मुला गाभरु।
मुला गाभरु ऐसी वीर महिला थी जिन्होने मुस्लिम आक्रमणकारियों से भिड़ने का साहस ही नही किया अपितु दो दो शत्रु सेनापतियों को मैदान के बीच मार गिराया। बंगाल के इस्लामी सुल्तानों ने असम, जिसे की उस समय कामरूप के नाम से जाना जाता था,को जीतने के कई प्रयास किये।सन 1206 में खेन वंश के राजा पृथु ने वख्तियार खिलजी को बुरी तरह हराया था। वख्तियार खिलजी असम पर आक्रमण करने वाला प्रथम इस्लामिक आक्रमणकारी था। 1527 में रुकनुद्दीन रुकुन खान ने कामरूप पर आक्रमण किया परन्तु अहोम राजाओं ने उसे खदेड़ दिया।रुकुन खान बंगाल के सुल्तान नसरुद्दीन नुसरत शाह का सेनापति था।
उस समय तत्कालीन कामरूप पर अहोम राजा विश्व सिंहा का राज था।अपने सेनापति की हार के बारे में सुनकर सुल्तान ने एक अन्य फौजदार मीत माणिक को एक हजार घुड़सवारों और दस हजार पैदल सैनिकों की फौज के साथ युद्ध के लिए भेजा परन्तु एक बार फिर यहाँ अहोम सेना की ही जीत हुई। मीत माणिक को बंदी बना लिया गया जबकि रुकुन खान मैदान छोड़कर भाग गया। 1527 की अपनी इस मुहिम के असफल रहने के बाद एक बार फिर नुसरत शाह ने 1532 में तुरबक खान के नेतृत्व में एक बड़ी फौज असम पर आक्रमण के लिए भेजी।
इस फौज में जमीनी सेना और नौसेना दोनो ही थी।मुस्लिम फौज अत्याधुनिक आयुधों से सज्जित थी और युद्ध के लिए तैयार थी। पी डब्ल्यू इंगती की पुस्तक “वार ड्रम्स ऑफ ईगल किंग ” में कहा गया है कि “तुरबक खान की फौज सैन्य साजो सामान और रसद से लदी हुई थी।सिपाही अच्छी तरह प्रशिक्षित थे और ब्रह्मपुत्र के उत्तरी किनारे पर अहोम इलाको की तरफ बढ़ते हुए देख कर ऐसा लगता नही था कि कोई उन्हें रोक पायेगा।” असम पर उस समय अहोम राजा सुहंगमुंग का शासन था।वे 14 वे अहोम राजा थे।स्वर्गनारायण धींगिया राजा की उपाधि के साथ वे 1497 ई में राजा बने थे।उनके शासनकाल में अहोम राज्य की सीमाओं का पहले की तुलना में काफी विस्तार हुआ था।
अहोम एवम मुस्लिम राजाओं के बीच 1532 ई. से लेकर 1533 ई. तक कई युद्ध लड़े गए। पहला युद्ध तुरबक खान एवम सुहंगमुंग के पुत्र सुकलेन के मध्य सिंगरी में लड़ा गया जिसमें अहोम सेना की हार हुई और सुकलेंन घायल हो गया।अहोम सेना ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी तट की ओर पीछे हट गई।मुस्लिम फौज ने उसका पीछा किया और कुछ अन्य युद्ध लड़े गए,जिनका कोई परिणाम नही निकला। इन्ही में से एक युद्ध मे 1533 ई. में अहोम सेना का नेतृत्व फरासेमूंग बरगोहाई कर रहे थे।बरगोहाई एक उपाधि थी जो कि अहोम दरबार मे वरिष्ठता में दूसरे मंत्री या दरबारी को दी जाती थी।
वरिष्ठता में पहले दरबारी की उपाधि बूढ़ागोहाई थी।यह व्यवस्था अहोम राजवंश के संस्थापक सुखपा ने लागू की थी।बाद में राजा सुहंगमुंग ने इस व्यवस्था में तीन अन्य उपाधियां जोड़ दी,जो कि वरिष्ठता क्रम में बड़पात्रगोहाई,सदियाखोवा गोहाई एवम मरंगिखोवा गोहाई थी।इन सब मंत्रियों के जिम्मे राज्य व्यवस्था के अलग अलग कार्य थे। तुरबक खान ने युद्ध मे फरासेमूंग बरगोहाई की धोखे से हत्या कर दी।अपने सेनापति की मृत्यु से अहोम सेना का मनोबल कमजोर पड़ गया और वह बिखरने लगी। बरगोहाई की पत्नी मूला गाभरु उस समय शिविर में ही थी परन्तु अपने पति की मृत्यु का समाचार सुन कर वह घबराई या विचलित नही हुई अपितु बिखरती सेना को संभालने का प्रयास करने लगी।
मुला गाभरु शस्त्र विधा में निपुण थी और लड़ने में भी उसे महारत हासिल थी।वह घोड़े पर सवार हुई और अपने सैनिकों में जोश जगाती हुई रणभूमि की ओर चल दी। रणभूमि में पहुँच कर ऐसा लगा जैसे मूला गाभरु में साक्षात रणचंडी प्रवेश कर गई हो। घमासान युद्ध मे उस वीर महिला ने मुस्लिम सेना में कोहराम मचा दिया। एक महिला एवम अपने सेनापति की पत्नी को इस तरह लड़ता देख कर अहोम सेना में भी एक जागृति का संचार हुआ और वह भी दोगुने मनोबल के साथ मुस्लिम सेना पर टूट पड़ी। सुल्तान के सैनिक मूला गाभरु को देख कर भागने लगे तो तुरबक खान ने अपने दो सिपहसालार रणभूमि में गाभरु की ओर रवाना किये। ये दोनों ही तुरबक खान के भरोसेमंद एवम वीर योद्धा थे।
वे दोनों जब मूला गाभरु के सामने पहुचे तो देखकर दंग रह गए कि कैसे एक महिला ने सेना में कोहराम मचा रखा है।दोनो एक साथ उस पर टूट पड़े इधर मूला भी दोगुनी शक्ति के साथ उनसे लड़ने लगी। वह अकेली महिला उनके वारो से स्वम् को बचाती भी थी तो मौका मिलते ही उन पर जोरदार प्रहार भी करती थी। अब तुरबक खान भी अपने सिपाहियों के साथ मूला गाभरु की ओर ही आ गया था और वह भी ये देखकर हतप्रभ रह गया कि कैसे एक अकेली महिला उसके सबसे बहादुर सिपहसालारों पर भारी पड़ रही है तभी मूला गाभरु ने एक जोरदार प्रहार उन दोनों में से एक पर किया और वह वही ढेर हो गया।
अपने साथी को यू मरते देख दूसरे का भी मनोबल डूब गया और कुछ समय मे ही मूला ने उस दूसरे को भी रणभूमि में ढेर कर दिया। तुरबक ने अपने सिपाहियों को तुरंत ही मूला को घेरकर मारने का आदेश दिया।अब मूला के ऊपर कई सैनिक एक साथ टूट पड़े और वह चारो तरफ से उन मुस्लिम सैनिकों से घिर गई और बहादुरी से उन सबका अकेले ही मुकाबला करने लगी परन्तु एक अकेली महिला कब तक स्वम् की रक्षा कर पाती। कुछ समय तक चले युद्ध के बाद वे गिरपडी और वीर गति को प्राप्त हो गई। उनकी मृत्यु के साथ ही अहोम सेना भी पीछे हट गई और एक बार फिर यह युद्ध भी बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गया।
इसके बाद अहोम सेना का सेनापति तोखाम बोरपात्र गोहाई को बनाया गया जिन्होंने अपनी युद्ध नीति में कई बदलाव किए। उन्होंने तुरबक खान की सेना से सीधे युध्द करने की बजाय उसकी रसद आपूर्ति और बंगाल से उसका संपर्क काटने की नीति बनाई और तुरबक खान को ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी भराली के तट पर दुईमुनिसिला में युद्ध करने को मजबूर कर दिया।यहां हुए भयानक युद्ध मे तोखाम बोरपात्र गोहाई ने तुरबक खान को मार डाला एवम उसकी सेना को तहस नहस कर डाला। लेस्ली शेक्सपियर की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ अपर असम ,अपर बर्मा एंड नॉर्थ ईस्टर्न फ्रंटियर के अनुसार,”अहोम राजा ने नदी और जमीन,दोनो के रास्ते अपनी सेनाएं भेजी।मुस्लिम फौज हार गई,तुरबक खान मारा गया और अहोम परम्परा के अनुसार उसका सर काट कर चराइदेव पहाड़ी पर दफन कर दिया गया। टूटी और भागती हुई मुस्लिम फौज का विजयी अहोम सेना ने कोछ क्षेत्र से होते हुए कारतोया नदी तक पीछा किया।”
इस युद्ध मे मूला गाभरु की वीरता ने अहोम सेना में एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया था उनके बलिदान ने अहोम सेना का मनोबल बढ़ा दिया था जिससे वे आतयायी सेना को अपने क्षेत्र से बाहर खदेड़ पाने में सफल हो सके थे। ऐसी महान वीरांगना की कथा हमारे पाठ्यपुस्तकों से अछूती क्यों रह गई,आखिर क्यों हमारे पूर्वोत्तर के राजाओं एवम वहां के वीरों के इतिहास से हम अनभिज्ञ रहे ये प्रश्न हमे स्वम् से अवश्य ही पूछने चाहिए।
1 thought on “कहानी असम की उस वीरांगना की जिसने अकेले ही दो सेनापतियों को मार गिराया – मुला गाभरु”
अद्भुत नमन है उस वीरांगना को 🙏
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