कोणार्क का सूर्य मंदिर क्यों बनाया गया था जानते हैं?

1192 ई• के द्वितीय तराइन युद्ध में मोहम्मद गोरी के हाथों पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद भारत के ज्यादातर क्षेत्रीय राजाओं को आक्रमणकारी कुचलते जा रहे थें। मोहम्मद गोरी के एक सरदार बख्तियार खिलजी ने 1201 में बंगाल पर हमला किया। इससे पहले उसने नालंदा, ओदंतपुरी और विक्रमशिला विश्वविद्यालय को भारी क्षति पहुंचाई थी। फिर 1203 ईस्वी में बंगाल के शासक लक्ष्मण सेन ने बख्तियार खिलजी के सामने घुटनें टेक दिए।

उस वक्त उड़ीसा के शासक ;राजा राजराज देव’ तृतीय हुआ करते थे जो महान ‘गंग वंश’ के शासक ‘नरसिंह देव प्रथम’ के दादा थें। (आपने इतिहास के किताबों में मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा बंगाल आक्रमण और उनका विजयगाथा पढ़ा होगा लेकिन दूसरी तरफ उड़ीसा पर कई आक्रमण हुए जिसे भारतीय इतिहासकारों ने न जाने क्यों गौण रखा। इसका कारण हिंदू विजय और अजेय गंग वंशीय राजाओं से भारतीय इतिहासकारों का बौद्धिक ईर्ष्या नहीं माना जाना चाहिए क्या? लक्ष्मण सेन पर उपहास करने वाले इतिहासकार आखिर नरसिंह देव पर मौन क्यों रहते हैं?)

खैर, अब आते हैं पहली तथ्यपरक कहानी पर:-

राजराज देव के पुत्र गंग वंशीय हिंदू राजा अनंग भीमदेव तृतीय पर बख्तियार खिलजी के उतरवर्ती कमांडर गयासुद्दीन ईवाज शाह ने 1223 ईस्वी में हमला कर दिया। गयासुद्दीन ने हमले के पहले एक बड़ी नौ सेना की टुकड़ी तैयार की थी ताकि उड़ीसा को पहले ही प्रयास में जीत लिया जाए। उस समय दिल्ली सल्तनत पर शासन कर रहे इल्तुतमिश ने अपने सभी सैन्य कमांडरों को अनेक क्षेत्रों में युद्ध के लिए लगा रखा था। इल्तुतमिश ने इन अभियानों के जरिए सिंध और मुल्तान को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया था, वहीं बंगाल में उसका सैन्य कमांडर गयासुद्दीन ईवाज शाह शासन की जिम्मेदारी संभाल रहा था। गयासुद्दीन ईवाज शाह ने उत्तरी उड़ीसा पर अपने भारी सैन्य बल के साथ हमला किया वहीं नौसेना को उसने महानदी में उतार कर आगे बढ़ा। 

अनंग भीमदेव तृतीय इस हमले को लेकर जवाबी कारवाई के लिए गुप्तचरों के कारण तैयार थें। उन्होनें उस समय नई तैयार की गई बराबती किले से गयासुद्दीन के सैन्य दल को पीछे धकेलना शुरू किया, उनके अनुभवी सैन्य कमांडर विष्णु ने सफलतापूर्वक गयासुद्दीन के भारी-भरकम सेना को क्षति पहुंचाई और पीछे धकेलता हुआ बंगाल के सीमा के अंदर तक खदेड़ता चला गया। कटक के सालेपूर में स्थित चतेश्वर मंदिर और अनंत वासुदेव मंदिर के अभिलेख सैन्य कमांडर विष्णु के द्वारा मुस्लिम आक्रमणकारियों के ऊपर गौरव पूर्ण विजय का उद्घोष करते दिखते हैं। अनंत वासुदेव मंदिर का अभिलेख कुछ इस प्रकार संस्कृत से हिंदी में अनुवादित है:-

“महान चोड्गंग के वंश परंपरा में अनंग भीमदेव ने अपने गौरवशाली पताके को थामे रखा है। उनके युद्ध कौशल और शत्रुओं के विध्वंस को हर नर-नारी त्यौहार की तरह मनाते हैं। उनको अपने फुर्तीले घोड़ों पर गर्व है, जो सांपों के दुश्मन गरूङ के उड़ने की गति से भी तेज दौड़ते हैं। उन्होंने यवनों (मुस्लिमों) के शासन क्षेत्रों में घुसकर उनके अंदर खौफ पैदा कर दी है।”

अनंग भीमदेव की मृत्यु के बाद महान योद्धा नरसिंह देव प्रथम ने उड़ीसा की गद्दी संभाली। ऐसा कहा जाता है कि सल्तनत कालीन समय में मुस्लिम आक्रमणकारियों के खिलाफ आक्रामक नीति अपनाने वाले एकमात्र शासक नरसिंह देव ही थे। उनके पिताजी ने पहले ही बंगाल के गौङ, राढ़, और वरेंद्र क्षेत्रों तक इस्लामिक आक्रमणकारियों को धकेल दिया था लेकिन खतरा अभी भी टला नहीं था।

नरसिंह देव प्रथम के समय बंगाल में इल्तुतमिश के गुलाम तुगरिल तुगन खान बंगाल का शासक सह दिल्ली सल्तनत का सैन्य कमांडर था। दिल्ली सल्तनत के प्रति वफादार रहते हुए बंगाल, बिहार और अवध पर उसने प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। यह दिल्ली की शासिका रजिया सुल्तान (1236-40) का समकालीन था। नरसिंह देव प्रथम को ज्ञात था कि गयासुद्दीन की भांति तुगरिल तुगन खान भी उड़ीसा पर हमले की योजना बना रहा है अतः स्थिति को भांपते हुए नरसिंह देव ने 1242 ईस्वी में बंगाल की ओर कूच किया। साथ में उन्होंने हैह्य वंशीय राजा सह रिश्तेदार परमारदिर्देव को भी साथ ले लिया। उनकी भारी-भरकम सेना गंगा नदी के पूर्वी राढ़ क्षेत्र (वर्तमान में जमशेदपुर से सटा हुआ बंगाल का इलाका) गौङ क्षेत्र (मध्य बंगाल और बांग्लादेश का भाग) और वरिंद्र क्षेत्र (उत्तरी बांग्लादेश और बंगाल का इलाका) के तरफ हमलावर हुआ। तुगरिल तुगन खान इस हमले से आश्चर्यचकित रह गया और तत्काल हिंदुओं के खिलाफ मुसलमानों के जिहाद का नारा बुलंद किया। उस समय दिल्ली के प्रसिद्ध दरबारी और इतिहासकार मिनहाज-उस-सिराज ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक तबकात-ए-नासिरी में इस जिहाद की चर्चा की है जो हिंदुओं के खिलाफ छेड़ा गया था। तुगरिल तुगन खान के जिहाद के नारे और दिल्ली सल्तनत के मदद के बावजूद नरसिंह देव ने बंगाल के राढ़ क्षेत्र पर सफलतापूर्वक अधिकार कर लिया और तुगरिल तुगन खान की सेना को हार का सामना करना पड़ा।

अब राढ़ और वरेंद्र (उतरी बांग्लादेश) के बीच में बसे लखनौती के तरफ नरसिंह देव की सेना को कुच करना था। लखनौती उस समय बंगाल की सल्तनत कालीन राजधानी हुआ करती थी और यह गंगा के किनारे स्थित थी। वर्तमान में यह जगह मालदा जिले में स्थित है जो कोलकाता से 324 किलोमीटर उत्तर की ओर स्थित है। लखनौती से पहले नरसिंह देव ने बंगाल के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र वरेंद्र के तरफ रुख किया। नरसिंह देव की भारी-भरकम सेना ने मुस्लिम साम्राज्य के क्षेत्र में तहलका मचा दिया। तत्काल बंगाल के सैन्य कमांडर शासक तुगरिल तुगन खान ने खुद को बचाने की दिल्ली सल्तनत से गुहार लगाई।

 
मिनहाज-उस-सिराज ने 1244 ईस्वीं में हुए इस हमले का ब्यौरा अपने ग्रंथ तबकात-ए-नासिरी में कुछ इस तरह दिया है:-

” जिहाद के नारा के बाद तुगरिल तुगन खान की सेना नरसिंह देव की सेना पर जवाबी हमले के लिए आगे बढ़ा। नरसिंह देव ने चतुराई पूर्वक अपनी सेना को कटासीन किले के पीछे के जंगलों में छुपा रखा था और जो सेना मैदान में दिख रही थी वह नगण्य थी। जंगल घना था और बड़ी-बड़ी झाड़ियों से ज्यादातर मार्ग अवरूद्ध था। किले के सामने के मैदान में ढ़ेर सारे हाथियों को खुला छोड़ दिया गया था, साथ में उनको खाने के लिए चारे की भी व्यवस्था की गई थी। हाथियों के आगे बड़े-बड़े गड्ढे खोदकर उन पर लकड़ियां और पत्ते रख दिए गए थे। ढ़ेर सारे हाथी तुगरिल खान की सेना को ललचा रहे थे, तुगरिल तुगन खान और उसकी सेना सोच रही थी जवाबी कारवाई के बाद नरसिंह देव की सेना हार मानकर बहुत सारे हाथियों को छोङकर वापस चली गई थी। हाथी अपना चारा खाने में व्यस्त थें। तुगरिल तुगन खान ने सामान्य स्थिति देखते हुए किले के सामने अपनी सेना को रोका और मध्यान भोजन करने लगा। नरसिंह देव ने अचानक से तुगरिल तुगन खान की सेना पर हमला किया, तुगरिल खान की सेना कुछ समझ पाती इससे पहले ही सैन्य दल में भयंकर हड़कंप मच गया। उसकी ज्यादातर सेना मारी गई। यह हमला दो तरफ से किया गया था। एक किले के बगल से, दूसरा जंगल की ओर झाड़ियों में छुपे 200 घुड़सवार और कई हाथियों के द्वारा। तुगरिल खान इस हमले में बाल-बाल बच गया लेकिन गंभीर रूप से जख्मी हो गया।”

अनंत वासुदेव मंदिर में भी इस युद्ध के बारे में अभिलेखीय प्रमाण मिलता है। संस्कृत से हिंदी में अनुवाद कुछ इस प्रकार हैं:-

“राढ़ और वरिंद्र (बंगाल) की यवनी (मुस्लिम) महिलाओं के बहने वाले आंसुओं से खुद गंगा (नदी) भी बहुत हद तक काली हो गई थी। उन यवनी महिलाओं के पति नरसिंह देव की सेना के द्वारा मार डाले गए थें।”

नरसिंह देव की विजयी सेना आगे बढ़ी। उन्होंने लखनौती किले की तरफ अपना अभियान जारी रखा। अब तक दो बहुमूल्य क्षेत्र राढ़, और वरेंद्र पर जीत दर्ज कर लिया गया था। लखनौती के किले का मुस्लिम कमांडर फखर-उल-मुल्क करीमुद्दीन लगरी नरसिंह देव की सेना के सामने खुले मैदान में लड़ने आया। नरसिंह देव के एक सैन्य कमांडर ने फखर-उल-मुल्क का सिर धड़ से अलग कर दिया। लखनौती के किले पर कब्जा कर लिया गया और उसके शस्त्रागार के शस्त्रों को हाथियों पर लादकर उड़ीसा भेजा गया। बंगाल के दोनों क्षेत्रों से अकूत धन संपत्ति हासिल किया गया। दिल्ली के आदेश पर मदद के लिए आई अवध की सेना कमरुद्दीन के नेतृत्व में किले के बाहर तमाशाबीन बनी रही, जबतक कि नरसिंह देव की सेना ने किले की सभी संपत्तियों को उड़ीसा तक न भेज दिया।
उमरूदान का युद्ध (1247-1256) ग़यासुद्दीन और तुगरिल तुगन खान जैसे बड़े सैन्य कमांडरों के हार और बंगाल के बड़े क्षेत्र पर नरसिंह देव के कब्जे के मद्देनजर दिल्ली सल्तनत ने 1247 ई• में इख्तियार-उद-दिन उज्बक को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया। यह दिल्ली के शासक नसरूद्दीन महमूद का दौर था जब दिल्ली पर परोक्ष रूप से बलबन का दबदबा चलता था। उज्बक ने बंगाल के क्षेत्रों पर नरसिंह देव के तरफ से राज कर रहे परमारदिर्देव को ललकारा लेकिन आंशिक सफलता के बाद पुनः उसे हार का मुंह देखना पड़ा। पुनः मुस्लिमों की सेना को दिल्ली सल्तनत के इशारे पर ईख्तियार-उद-दिन उज्बेक के नेतृत्व में जमा किया गया और उमरूदान (हुगली) के क्षेत्र में फिर से भिड़ंत हुई।
परमारदिर्देव ने इख्तियार को रोके रखा पर उनकी जान चली गई। स्थिति से निपटने के लिए नरसिंह देव की सेना ने राढ़ और गौङ के कब्जा किए गए क्षेत्रों पर और ज्यादा सख्ती के साथ सेना की तैनाती कर दी। नरसिंह देव के दुबारा आक्रमण और कत्लेआम के भय से ईख्तियार ने फिर कभी बंगाल के राढ़ और गौङ क्षेत्रों के तरफ दुबारा देखने की हिम्मत नहीं की। उसके पास लखनौती और वरेन्द्र क्षेत्र का शासन शेष रहा।

बंगाल का राढ़ और गौङ क्षेत्र वर्षों तक उड़िसा के गंग शासन के अधीन रहा और नरसिंह देव के आक्रामक सैन्य अभियान के कारण अगले 100 वर्षों तक मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा उड़ीसा पर कभी सीधा हमला नहीं हुआ।
गंग वंशीय राजा नरसिंह देव प्रथम को शिव, शक्ति और जगन्नाथ में आस्था रखने वालों का रक्षक कहा जाता है।

🌹 मुस्लिम आक्रमणकारियों पर सफलता की खुशी में ही नरसिंह देव प्रथम ने विश्व प्रसिद्ध कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण 1250 ईस्वी में करवाया और यह नरसिंह देव की दूरदृष्टि वाला सैन्य अभियान ही था जिससे उड़ीसा की सारे मंदिर आज भी हमारे बीच अस्तित्व में हैं। 🌹

कोणार्क का सूर्य मंदिर 1984 से यूनेस्को के विश्व धरोहर सूची में शामिल है एवम भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। नरसिंह देव द्वारा स्थापित कोणार्क के सूर्य मंदिर भारतीय मुद्रा के 10 रुपये के नोट पर छपवाया गया है परंतु हम हमारे इतिहास एवम इतिहास के नायकों से इतने अनभिज्ञ है कि हमे पता ही नही है कि आज जो हम सांस्कृतिक धरोहरों को देख रहे है उनके पीछे हमारे पूर्वजों का कितना रक्त एवम संघर्ष छुपा है।
हममें से कितने लोग आज उन रणंजय नरसिंह देव जी को जानते है?


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Rajan Bhardwaj

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1 thought on “कोणार्क का सूर्य मंदिर क्यों बनाया गया था जानते हैं?

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