संजय गांधी के जीवन के कुछ अनछुए पहलू

संजय गांधी उन नेताओं में से एक है जिनके चाहने वाले आज भी उनके जाने के बाद उन्हें शिद्दत से याद करते है।यह भारतीय राजनीति का एक ऐसा नाम है जो जब तक जिया हमेशा सुर्खियों में रहा और आज मरने के बाद भी उसकी मिशाले दी जाती है।देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में 23 जून 1980 को मौत हो गई थी।

संजय गांधी उन नेताओं में से एक है जिनके चाहने वाले आज भी उनके जाने के बाद उन्हें शिद्दत से याद करते है।यह भारतीय राजनीति का एक ऐसा नाम है जो जब तक जिया हमेशा सुर्खियों में रहा और आज मरने के बाद भी उसकी मिशाले दी जाती है।देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में 23 जून 1980 को मौत हो गई थी।

देश की राजनीति में विवादों में रहने के बाद भी लोकप्रिय रहे नेताओ में संजय गांधी का नाम भी शामिल है।हालांकि बहुत ही कम उम्र में उनका निधन हो गया पर फिर वे अपने छोटे से जीवनकाल में ही उन्होंने शोहरतो की बुलंदियों को छू लिया था।अपने तेजतर्रार एवम आक्रामक अंदाज से युवाओं में वे बहुत लोकप्रिय हुए।उनके जीवन के साथ कई विवाद भी जुड़े साथ ही इमरजेंसी के बाद कांग्रेस के पुनर्जन्म के लिए भी उन्हें याद किया जाता है।

संजय गांधी को इंदिरा गांधी के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था परंतु उनकी असामयिक मृत्यु ने सारे राजनैतिक समीकरण बदल डाले एवम जब उनकी मृत्यु के 4 साल बाद 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो उनके बड़े पुत्र राजीव गांधी को उनकी विरासत सम्हालने के लिए मजबूरी वश राजनीति में आना पड़ा।राजीव गांधी की मृत्यु के बाद सोनिया गांधी ने काँग्रेस की कमान सम्हाली वही संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी आज भाजपा के साथ है और केंद्र में मंत्री है।

अपने अंदाज के लिए थे मशहूर

देश की राजनीति में 70 का दशक बहुत यादगार है और उसमे एक बड़ा नाम संजय गांधी का भी है।भारत मे लगी इमरजेंसी के लिए जानकर लोग संजय गांधी को जिम्मेदार ठहराते है परन्तु फिर भी अपनी तेज तर्रार शैली व दृढ़ निश्चयी सोच के कारण वे देश के युवाओं की पसंद थे।संजय गांधी अपने भाषण व सादगी भरे अंदाज के लिए मशहूर थे।कहते है कि वे प्लेन में भी कोल्हापुरी चप्पल पहनते थे जिसके लिए उन्हें कई बार बड़े भाई राजीव गांधी द्वारा टोका जाता था कि प्लेन उड़ाते समय चप्पल नही पायलट वाले जूते पहने।

समय के बड़े पाबंद थे संजय

एक रैली के दौरान संजय गांधी

संजय गांधी को करीब से देखने व जानने वाले उन्हें समय का बड़ा पाबंद बताते है।लेखक विनोद मेहता ने ‘द संजय स्टोरी’ में लिखा है कि संजय गांधी का दिन सुबह 8 बजे शुरू हो जाता था।वैसे तो सरकार में संजय गांधी की कोई हैसियत नही थी परंतु अधिकारी हर दिन उन्हें अपनी डेली रिपोर्ट देते थे और ऑर्डर लेते थे।अधिकारियों से लेकर कांग्रेस के नेताओ व मंत्रियों तक सभी उन्हें सर कहते थे।

पार्टी में सबके सामने इंदिरा गांधी थप्पड़ मार दिए थे

दिल्ली में हुई एक डिनर पार्टी मे संजय गांधी ने इंदिरा गांधी को लगातार 6 तमाचे जड़े थे।

जब देश मे 25 जून 1975 को इमरजेंसी लगी थी एवम इसकी घोषणा की गई थी तो पुलित्जर अवार्ड से सम्मानित पत्रकार लुइस सिमंस उस वक़्त दिल्ली में वाशिंगटन पोस्ट के संवाददाता थे।उस समय सिमंस को पांच घंटे के भीतर देश छोड़ने का आदेश दिया गया।भारत से बाहर उन्होंने बैंकोंक के एक होटल में बैठकर एक रिपोर्ट फाइल की जो बड़ी तेजी से दुनियाभर में फैल गई।उस रिपोर्ट में लुइस ने दावा किया कि इमरजेंसी की घोषणा से कुछ दिन पहले दिल्ली में हुई एक डिनर पार्टी मे संजय गांधी ने इंदिरा गांधी को लगातार 6 तमाचे जड़े थे।हालांकि सिमंस उस पार्टी में नही थे परंतु उन्होंने पार्टी में मौजूद दो अन्य लोगो के हवाले से यह दावा किया था।

देश मे मारुति लाने का श्रेय संजय गांधी को है

संजय गांधी को कारो व विमानों का बड़ा शौक था।उन्होंने अपना कॉलेज छोड़ दिया था और रॉल्स रॉयल के साथ इंटर्नशिप करने चले गए थे।जब लौटे तो भारतीय परिवेश के अनुकूल एक कार बनाने का विचार उनके मन मे आया।दिल्ली के गुलाबी बाग में एक वर्कशॉप तैयार की गई।माँ व तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से जब इस पर चर्चा हुई तो उन्होंने एक कम्पनी बना दी और इस तरह 1971 में ‘मारुति मोटर्स लिमिटेड’ अस्तित्व में आई और संजय गांधी उसके मैनेजिंग डायरेक्टर बने।परन्तु उसके बाद इमरजेंसी लगी और इंदिरा गांधी सत्ता से बाहर हो गई।

उसके बाद सत्ता में आई जनता पार्टी की सरकार ने इस प्रोजेक्ट को बंद कर दिया और जांच बैठा दी। 1980 में इंदिरा सरकार की पुनः वापसी हुई लेकिन उसके कुछ महीने बाद ही संजय गांधी एक प्लैन क्रेश में मारे गए।लेकिन उसके 3 साल बाद,दिसम्बर 1983 में मारुति 800 की लॉन्चिंग हुई और यह पूरे देश मे छा गई। संजय का यह सपना उनकी मौत के बाद पूरा हुआ।

प्लेन हादसे में हुई थी मौत

संजय गांधी द्वारा उड़ाए जा रहे विमान की दुर्घटना होने के बाद कि तस्वीर

23 जून 1980 का दिन जब देश का एक लोकप्रिय नेता मात्र 33 वर्ष की आयु में इस दुनिया से विदा ले गया।वो सुबह का वक़्त था जब अमेठी से सांसद और एक महीने पहले ही काँग्रेस के महासचिव बने देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री के छोटे बेटे अपने घर से निकले और पहुँचे एक किलोमीटर दूर सफदरजंग एयरपोर्ट जहाँ दिल्ली फ्लाइंग क्लब के चीफ इंस्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना उनका इंतजार कर रहे थे साथ था एक नया एयरक्राफ्ट पिट्स एस 2 ए। संजय सियासत में भी रिस्क लेने से नही चूकते थे तो यहां तो बात शौक की थी। सुबह के 7.15 बजे उड़ान भर चुकी थी और संजय गांधी और उनके साथ सुभाष सक्सेना आसमान की ऊंचाइयों पर पहुँच चुके थे और उनके करतब शुरू हो चुके थे।

अभी 10 मिनिट ही बीते थे जब संजय विमान को जमीन के बिल्कुल करीब लाकर पेड़ो के ऊपरी हिस्से को छूने लगे थे लेकिन आज नियति को कुछ और ही मंजूर था।कुछ ही मिनिट बाद वे नियंत्रण खो बैठे और डिप्लोमेटिक एनक्लेव में संजय गांधी के घर से थोड़ा ही दूर पिट्स क्रेश कर गया।

पेड की डालियां काट कर प्लैन के मलबे के बीच फंसी संजय और सुभाष की लाशें निकाली गई।दोनो की मौत हो चुकी थी।कुछ ही पलो में इंदिरा गांधी भी घटनास्थल पर पहुँच गई और फूट फूट कर रोने लगी। आज उनका वास्तविक उत्तराधिकारी और ताकत छोटा बेटा संजय निढाल पड़ा था। संजय गांधी की मौत भी बिल्कुल उनकी ज़िंदगी की तरह ही थी- अचानक,क्रूर और चौकाने वाली। संजय गांधी की शवयात्रा में देश के हर राज्य के मुख्यमंत्री थे जो बता रहे थे कि उस व्यक्ति का राजनैतिक कद क्या था।दिल्ली में मौजूद हर सांसद कतार लगा कर एक युवा नेता को पुष्पांजलि अर्पित कर रहा था।रेडियो पर शोकधुन बज रही थी।

विमान हादसे में संजय गांधी की मौत के बाद उनकी शवयात्रा में शामिल जनसमूह
विमान हादसे में संजय गांधी की मौत के बाद उनकी शवयात्रा में शामिल जनसमूह


संजय गांधी ने आखिरी बार जाते हुए भी देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा और हमेशा के लिए विदा ले गए।मारुति बनाने वाला मारुतिनंदन की तरह हवा में गोते लगाना चाह रहा था परन्तु वे ईश्वर थे जो कभी नही गिरते और ये एक इंसान जिसकी एक चूक उसके अंत के लिए काफी है।

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