क्या है गंगा दशहरा एवम गंगा अवतरण की कथा ?

क्या है गंगा दशहरा एवम गंगा अवतरण की कथा
राजा भागीरथ के प्रयास एवम तपस्या से प्रसन्न होकर माँ गंगा ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को पृथ्वी पर आई थी जिसे गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है।

भारत एवम विश्व भर के हिन्दुओ के लिए नदियों में माँ गंगा का स्थान सर्वोच्च है एवम मान्यता है कि गंगा नदी में स्नान करने मात्र से मनुष्य के पापो का नाश हो जाता है।जितना गंगा नदी का धार्मिक महत्व है उतना ही उत्तर भारत के लिए आर्थिक महत्व भी है और इसे जीवनदायिनी भी कहा जाता है क्योंकि इन्ही गंगा मैया के द्वारा भूमि को कृषि के लिए जल प्राप्त होता है।

गंगा नदी का उद्गम गंगोत्री से होता है और 2510 किमी की यात्रा तय करते हुए भारत व बांग्लादेश में बहते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर सागर में मिल जाती है।

 

गंगा नदी का धार्मिक महत्व

भारत की समस्त धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी एवम माँ के रूप में ही माना गया है।गंगाजल को सबसे पवित्र माना जाता है और यही कारण है कि हिन्दू धर्म के सभी संस्कारो में गंगाजल का विशेष महत्व है एवम उसका होना आवश्यक है।पंचामृत में भी गंगाजल को अमृत समान माना गया है।मरने के बाद भी व्यक्ति के दाह संस्कार के बाद बची हुई भस्म एवम अस्थियों को गंगाजल में ही प्रवाहित किया जाता है क्योंकि माना जाता है कि इससे व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है।

कुंभ मेले के दौरान उपस्थित जनसमूह का दृश्य


भारत मे होने वाले अनेकों पर्व एवम त्योहारों का गंगाजी से सम्बन्ध है।मकर संक्रांति,कुम्भ व गंगा दशहरा पर गंगा जी के दर्शन व स्नान करना महत्वपूर्ण व पुण्यदायी माना जाता है।

क्या है गंगा जी के अवतरण की कथा

माँ गंगा के अवतरण की कथा पुराणों में वर्णित है एवम मान्यता है कि पृथ्वी पर आने से पहले गंगा जी स्वर्ग में बहा करती थी परन्तु राजा भागीरथ के प्रयास एवम तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा जी धरती पर अवतरित हुई। आखिर क्यों भागीरथ को गंगा जी को धरती पर लाने के लिए तपस्या करनी पड़ी तो उसका कारण उनके पूर्वजो की कथा से जुड़ा हुआ है।भागीरथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था। 

इक्ष्वाकु वंश में ही एक राजा थे जिनका नाम सगर था।राजा सगर की दो पत्नियां थी जिनका नाम केशिनी और सुमति था। राजा सगर को ऋषि औरव के आशीर्वाद से केशिनी द्वारा एक पुत्र असमंजस तथा सुमति से साठ हजार पुत्रो की प्राप्ति हुई।असमंजस बुरी प्रवृत्ति एवम दुष्ट स्वभाव का था और अपने बड़े भाई को देखकर अन्य छोटे साठ हजार भाई भी उसी का अनुसरण करने लगे। उनके दुष्ट व्यवहार से सभी दुखी हो गए थे।

उत्तराखंड  में स्थित गंगोत्री धाम में स्थित गोमुख जहाँ से गंगा जी का उद्गम होता है
उत्तराखंड में स्थित गंगोत्री धाम में स्थित गोमुख जहाँ से गंगा जी का उद्गम होता है

इसी बीच राजा सगर द्वारा एक अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया गया।इस यज्ञ में प्रयुक्त घोड़े को राजा इंद्र ने चुरा लिया और पाताल में जहाँ कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे वहां बांध दिया। राजा सगर के पुत्र यज्ञ के अश्व को ढूंढने लगे और जब पृथ्वी पर कही भी घोड़े को नही पाया तो वे पाताल जाने को उद्यत हुए। पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम में उन्होंने घोड़े को बंधा हुआ पाया और वही पास में ही कपिल मुनि तपस्या में लीन दिखाई दिए। ध्यानमग्न कपिल मुनि को देखकर वे अपशब्द कहने लगे परन्तु ध्यान में स्थित मुनि को ये पता ही नही चला।

इस तरह से जब उन्होंने देखा कि मुनि कुछ भी नही कह रहे है तो उन्होंने उन पर चरणों का प्रहार करना शुरू कर दिया तो मुनि की समाधि भंग हो गई। जब उन्होंने क्रोध भरे नेत्रों से राजा सगर के साठ हजार पुत्रो की ओर देखा तो क्रोधाग्नि में वे सभी जलकर भस्म हो गए। जब राजा सगर को इस घटना की जानकारी हुई तो वे अत्यंत दुखी भी हुए पर अपने पुत्रों के दुर्व्यवहार व दुष्ट प्रवृत्तियों से परिचित होने के कारण उन्हें संतोष हुआ। असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमान था उन्हें राजा सगर ने अश्व को लाने का दायित्व दिया।अंशुमान बहुत विद्धवान व उत्तम व्यवहार वाले पुरुष थे।

जब वे कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचे तो उन्होंने मुनि की हाथ जोड़कर प्रार्थना की तथा अश्व को मांगा। राजपुत्र अंशुमान के व्यवहार से कपिल मुनि बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने वर मांगने के लिए कहा। अंशुमान ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा कि ,हे मुनिवर,हमारे इन पितरों की मोक्ष प्राप्ति कैसे हो इसका समाधान बताए।” कपिल मुनि ने कहा कि आपके परिवार में यदि कोई पवित्र व पावन गंगा नदी को धरती पर ला सके तो उसी के जल से इन सबको मोक्ष की प्राप्ति होगी।

राजा सगर के बाद अंशुमान गद्दी पर विराजित हुए।गंगा जी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए अंशुमान अपने पुत्र दिलीप को राजपाट सौप कर गंगाजी की आराधना करने के लिए हिमालय पर चले गए। राजा अंशुमान ने कठोर तपस्या की परन्तु गंगाजी को प्रसन्न न कर सके और अंशुमान राजा अपने धाम को प्रस्थान कर गए। अंशुमान के बाद राजा दिलीप ने अपने पुत्र भागीरथ को राज सौप दिया और स्वम् गंगाजी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने चले गए परन्तु वे भी गंगाजी को प्रसन्न न कर सके।

दिलीप के बाद भागीरथ तपस्या करने के लिए गए और गंगाजी को प्रसन्न कर लिया परन्तु तब एक दूसरी समस्या आ खड़ी हुई। स्वर्ग से पृथ्वी पर आने पर गंगा जी की धारा के वेग को पृथ्वी धारण करने में असमर्थ थी।गंगाजी ने भागीरथ को अपने वेग को धारण करने के लिये भगवान शिव की आराधना करने के लिए कहा। 

भगीरथ ने थोड़े ही समय मे भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया।भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव गंगा को अपनी जटाओं में धारण करने के लिए तैयार हो गए। इस प्रकार गंगा जी का पृथ्वी पर आने का मार्ग प्रशस्त हो गया।गंगा जी के प्रबल वेग को भोलेनाथ ने अपनी जटाओं में धारण कर लिया और अपनी जटाओं को बांध लिया और एक छोटी धारा के रूप में बाहर निकाला।गंगा माँ का पृथ्वी पर पधारी एवम बहते हुए कपिल मुनि के आश्रम तक पहुची एवम भागीरथ के पूर्वजो का उद्धार किया। इस प्रकार भागीरथ जी ने गंगा जल द्वारा अपने पूर्वजों का उद्धार किया। राजा भागीरथ के प्रयासों से गंगा नदी पृथ्वी पर आई इसलिए गंगा जी को भागीरथी भी कहा जाता है।

जिस दिन गंगा जी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ उस दिन ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी इसलिए आज भी इसे गंगा दशहरा के रूप में माना जाता है।

काशी में गंगा जी का मनोहारी दृश्य
काशी में गंगा जी का मनोहारी दृश्य

गंगा दशहरे का महत्व

गंगा दशहरे पर माँ गंगा के पूजन एवम स्नान का विशेष महत्व है।यदि गंगा स्नान संभव न हो सके तो घर पर ही जल में गंगा जल मिलाए एवम उससे स्नान करे।इसके बाद माँ गंगा का पूजन करे।पूजन के बाद किसी गरीब व्यक्ति को आटा, दाल,नमक,चावल व घी आदि का दान करे।इस दिन व्रत करने का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार गंगा दशहरे पर पूजन,व्रत व दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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