12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है,जानते है क्यों?

12 मई को अंतराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है परंतु क्या आप जानते है कि अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस क्यों और किनकी याद में मनाया जाता है?
एक समय था जब नर्सिंग को एक सम्मानजनक पेशा नही समझा जाता था परन्तु 1854 में हुए क्रीमिया के युद्ध मे सैनिकों की सेवा सुश्रुसा एवम उनकी चिकित्सा में अतुलनीय योगदान के लिए फ्लोरेंस नाइटिंगेल के सहयोग को सराहा गया था एवम उनके इस विशेष योगदान एवम नर्सिंग को सम्मानजनक पेशा बनाने के लिए उनके जन्मदिवस को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

florence nightingale                                                                        फ्लोरेंस नाइटिंगेल

कौन है फ्लोरेंस नाइटिंगेल

फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 12 मई,1820 को को इटली के फ्लोरेंस में हुआ था।एक समृद्ध परिवार में फ्लोरेंस का जन्म हुआ था व इनके पिता का नाम विलियम नाइटिंगेल व माता का नाम फेनी नाइटिंगेल था।फ्लोरेंस के पिता अपनी बेटियों की शिक्षा को लेकर बहुत गंभीर थे और उन्होंने भी फ्लोरेंस को विज्ञान, इतिहास व गणित जैसे विषय पढ़ाये।

फ्लोरेंस का प्रारंभिक जीवन

फ्लोरेंस का जन्म इटली में हुआ था परंतु वे अपने माता पिता के साथ इंग्लैंड चली गई।विक्टोरिया काल मे बड़े घरों की महिलाएं काम नही करती थी परन्तु फ्लोरेंस कुछ अलग करना चाहती थी.उनका मानना था कि भगवान ने उनको पीड़ित लोगों की मदद के लिए कहा है और वह नर्स बनना चाहती है जो बीमार एवम परेशान लोगो की मदद कर सके।
अपने पिता को जब उन्होंने नर्सिंग में जाने के लिए कहा तो वे बहुत नाराज हुए क्योंकि नर्सिंग को सम्मानजनक पेशा नही जाना जाता था और अस्पताल काफी गंदे और डरावने होते थे।परंतु फ्लोरेंस की जिद के आगे माँ बाप को झुकना पड़ा।1851 में फ्लोरेंस ने नर्सिंग में दाखिला लिया।जर्मनी में महिलाओं के लिए एक क्रिश्चियन स्कूल में मरीजों की देखभाल के अहम हुनर सीखे।1853 में उन्होंने महिलाओं के लिए लंदन में एक अस्पताल खोला।वहां उन्होंने बहुत अच्छा काम किया।

क्रीमिया के युद्ध मे फ्लोरेंस की भूमिका

1854 में क्रीमिया का युद्ध हुआ।उस युद्ध मे ब्रिटेन,फ्रांस और तुर्की एक तरफ थे तो दूसरी तरफ था रूस।ब्रिटिश सैनिकों को लड़ने के लिए क्रीमिया भेजा गया परन्तु पता चला कि वहां सैनिक जख्मी होने,ठंड,भूख एवम बीमारी से मर रहे है।उनकी देखभाल के लिए वहां कोई उपलब्ध नही था ऐसे में युद्ध मंत्री सिडनी हर्बर्ट फ्लोरेंस को जानते थे।उन्होंने फ्लोरेंस को नर्सो का एक दल लेकर क्रीमिया जाने को कहा।जब फ्लोरेंस वहाँ पहुची तो वहां की दयनीय स्थिति देखकर दंग रह गई।अस्पताल खचाखच भरे हुए एवम गंदे थे।नालिया,शौचालय सब टूटे पड़े थे।गंदगी,शुद्ध भोजन की अनुपलब्धता आदि के कारण बीमारियां तेजी से फैल रही थी और लोग मर रहे थे।
ऐसे में फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने अस्पताल की हालत सुधारने पर ध्यान दिए।उन्होंने बेहतर चिकित्सीय उपकरण खरीदे।साफ सफाई से लेकर सैनिकों के लिए शुद्ध भोजन तक सारे इंतजाम किए।जख्मी सैनिकों की देखभाल एवम उनकी साफ सफाई आदि पर ध्यान दिया जिससे मृत्युदर में कमी आई।

रात को मरीजों को देखने के लिए वह लालटेन हाथ मे लेकर जाती थी इसलिए सैनिकों ने फ्लोरेंस को लेडी विद लैंप कहना शुरू कर दिया।

युद्ध के बाद

1856 में युद्ध से वह जब लौटी तो उनका नाम काफी फैल चुका था।अखबारों में उनकी कहानियां छप रही थी।लोग उन्हें नायिका समझने लगे।रानी विक्टोरिया ने भी पत्र लिखकर उनका शुक्रिया अदा किया एवम रानी विक्टोरिया से उनकी भेंट भी हुई।उन्होंने सैन्य चिकित्सा प्रणाली में सुधार पर चर्चा की एवम इसके बाद बड़े पैमाने पर सुधार हुए।सैनिकों को बेहतर चिकित्सा सुविद्याए,अस्पताल और खाना मुहैया कराए जाने लगा।लंदन के सेंट थोमस अस्पताल में 1860 में नाइटिंगेल ट्रेनिंग स्कूल फॉर नर्सेज खोला गया।उन्होंने न सिर्फ वहां नर्सेज को प्रशिक्षण दिया अपितू घर से बाहर काम करने वाली महिलाओं के लिए नर्सिंग को एक सम्मानजनक केरियर भी बनाया।
13 अगस्त 1919 को फ्लोरेंस का निधन हो गया।उनके सम्मान में उनके जन्मदिवस को नर्सिंग दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की गई।इस मौके पर नर्सिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाली नर्सो को फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरुष्कार से सम्मानित किया जाता है।

Share on facebook
Share on twitter
Share on whatsapp