सावरकर जयंती-हम उनके उस कथित माफीनामे को सोने के फ्रेम में जड़वाएँगे।

SAWARKAR ji

“सारकर इसलिए पूज्य नही है की उनका नाम किसी किसी स्कूल की किताब या किसी जेल के शिलापट्ट पर लिखा है बल्कि सावरकर इसलिए पूज्य है क्योंकि उनका नाम हर देशभक्त के सीने में अंकित है और जहाँ तक उस कथित माफीनामे का सवाल है तो वो “कथित माफीनामा” है भी तो वो सोने के फ्रेम में मंडवाकर सहेज कर रखने लायक धरोहर है,शर्मिन्दा होने का कारण नही।”

 

सावरकर का नाम आते ही कुछ लोग उनके अंग्रेजो को लिखे गए एक कथित माफीनामे को लेकर टिप्पणियां करना शुरू कर देते है।कुछ लोगो ने सावरकर को राजनैतिक दलों के बीच विभाजित करने का कुचक्र भी चला है और बार बार झूठ बोल कर इसे ऐतिहासिक सच मे बदलने की कोशिश की है।
सावरकर को सिर्फ एक राजनैतिक दल के साथ जोड़ना सावरकर के कद का अपमान है क्योंकि सावरकर अपने आप मे राष्ट्रवाद का एक विचार है, उफान है,प्रेरणा है।

स्वातंत्र्य वीर सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था।नाम मे क्या रखा है ऐसी फिलोसोफी भले ही और किसी के साथ सुसंगत बैठ जाती हो पर सावरकर के नाम के साथ ऐसा नही है ।
ऐसा इसलिए नही है क्योंकि वे सचमुच में “विनायक”थे।

सावरकर हीरो या विलेन

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर का योगदान व भारत के समाज के उत्थान में सावरकर का योगदान दोनो ही ऐसे विषय है जिनके बारे में एक बड़ा झूठ गढा गया है।
सावरकर को सिर्फ इसलिए बदनाम करने की कोशिशें की गई क्योंकि उन्होंने स्वतंत्र भारत को हिंदुत्व से परिचय कराया और हिंदुत्व को राजनैतिक परिचय दिया।
परंतु कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसने ईमानदारी से इतिहास का अध्ययन किया हो तो वह सावरकर को हीरो ही कहेगा।
इतिहासकार व लेखक विक्रम संपथ की पुस्तक ‘सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट’ में सावरकर के बारे में सब कुछ जानने को मिल जाता है।

सावरकर का माफीनामा क्या एक झूठ है?

सावरकर की आत्मकथा ‘सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट’ में लेखक बताते है कि ये कोई दया याचिका नही थी अपितु ये सिर्फ एक कानूनी याचिका थी। सावरकर कानूनवेत्ता भी थे।सावरकर जानते थे कि प्रत्येक कैदी को अपना केस लड़ने के लिए एक वकील नियुक्त करने की छूट होती है उसी तरह सारे बंदियों को याचिका देने की छूट भी दी गई थी।उन्होंने जेल से छूट कर देश सेवा में खुद को लगाने के लिए इस याचिका का इस्तेमाल किया था।इस याचिका में अंग्रेज सरकार से वादा किया जाता था कि यदि बंदी को जेल से रिहा किया गया तो वह अंग्रेज हुक़ूमत के खिलाफ नही जाएगा।एक बुद्धिमान क्रांतिकारी की तरह ही सावरकर ने इस याचिका का उपयोग अपनी रिहाई के लिए किया था।इस बात को गांधी जी ने भी माना था और कहा था कि सावरकर एक चतुर क्रांतिकारी है।

गांधी जी जानते थे कि जेल में रह कर उतना सब नही किया जा सकता है जो जेल से बाहर रह कर किया जा सके। सावरकर ने देश की स्वतंत्रता हेतु कठोर बलिदान दिए परन्तु इस देश की राजनीति ने उन्हें वो स्वीकार्यता नही मिलने दी जिसके वो अधिकारी थे।

सावरकर वीर भी है और देशभक्त भी

देश के लिए वीर सावरकर ने तमाम तरह की यातनाएं सही थी।1910 में नासिक के अंग्रेज कलेक्टर की हत्या के जुर्म में उन्हें 25-25 साल की दो सजाए सुनाई गई।उन्हें काला पानी की सजा सुनाई गई और अंडमान की कुख्यात सेलुलर जेल में 9 साल तक अमानवीय यातनाएं दी गई।सेल्युलर जेल में एक छोटी सी कालकोठरी में सावरकर को रखा जाता था।जेल में कोल्हू चला कर प्रतिदिन तेल निकालना पड़ता था और जब थक कर पैर लड़खड़ा जाते थे तो अंग्रेज सैनिक चाबुक से मारते थे। अपने साथ साथ अन्य कैदियों की दयनीय स्थिति को देखकर सावरकर विचलित हो जाते थे।

सेलुलर जेल का कक्ष जिसमे सावरकर को रखा गया था।

 जिस कोटरी में वो कैद थे उसी कोटरी में मल त्याग करने की सजा उन्हें मिलती थी। सावरकर के सामने दो ही विकल्प थे या तो यू ही यातनाओं को सहते हुए अपनी मृत्यु का इंतजार करें या फिर किसी भी तरह उस जेल से बाहर निकल कर स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में सहयोग दे इसलिए उन्होंने मृत्यु का इंतजार करने की वजाय लड़ने के लिए याचिका के विकल्प का चयन किया। 

सावरकर ने ही दिया था 1857 को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम नाम

1857 में हुई क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम नाम वीर सावरकर ने ही दिया था।उन्होंने ‘1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ शीर्षक से ऐतिहासिक पुस्तक लिखी।भारतीय दृष्टिकोण और ऐतिहासिक सच्चाइयों को तथ्यों व साक्ष्यों के साथ प्रस्तुत करती यह किसी भारतीय द्वारा लिखी गई पहली पुस्तक थी।क्रांतिकारियों के बीच यह पुस्तक बहुत लोकप्रिय हुई थी।आजतक के इतिहास की शायद यह पहली पुस्तक होगी जिसके प्रकाशन से पूर्व ही बैन कर दिया गया।क्रांतिकारी चोरी चोरी इस पुस्तक की प्रतियां बांटते थे।

क्या है सावरकर की हिंदुत्व विचारधारा

कोई माने या न माने परन्तु ये सार्वभौमिक सत्य है कि भारत और हिन्दू दोनो एक दूसरे के पर्याय है।
सावरकर वो थे जिनकी दृष्टि हिंदुत्व के विचार को लेकर कभी भ्रम में नही रही।सावरकर के समय आर्यसमाज की लोकप्रियता चरम पर थी और ऋषि दयानंद की शिक्षा के चलते अपने लिए हम हिन्दू शब्द का प्रयोग करना छोड़ने लगे थे।वो सावरकर ही थे जिन्होंने हिन्दू शब्द को कभी गाली के तौर पर नही लिया था बल्कि इस शब्द को राष्ट्रीयता के पर्याय में रूपांतरित कर दिया।समाज के ऊंचे लोगो के मन मे अपने हिन्दू होने को लेकर हीनता व अपराधबोध था,जो लोग हिन्दू सामाजिक जीवन व स्वाधीनता संग्राम में लगे हुए थे उनमें भी दूर दृष्टि का अभाव था ऐसे में वो सावरकर थे जिन्होंने हिंदुत्व को भारत की राष्ट्रीय राजनीति की दिशा निर्धारक मुद्दा बनाकर केंद्र में ला दिया।

सावरकर वो थे जिन्होंने सबसे पहले इस सत्य को समझा था कि भारत का कल्याण,भारत भूमि का रक्षण और स्वाधीन भारत का काम केवल यहां का मुख्य समाज कर सकता है और उनको ही करना है।भारत का भविष्य गैरो के भरोसे नही छोड़ा जा सकता,इसलिए उन्होंने भारत के स्वातंत्र्य समर में न तो गैरो को शामिल किया और न ही उनकी खुशामदें की,इसलिए सावरकर वो थे जिन्होंने सबसे पहले ये समझा और समझाया कि “तुष्टिकरण केवल और केवल पुष्टिकरण है।”

सावरकर वो थे जिन्होंने सबसे पहले समाज मे व्याप्त बुराइयों के विरुद्ध आवाज उठाई।उन्होंने अश्पृश्यता के उस दर्द को महसूस किया जो हिन्दू समाज का ही एक वर्ग झेल रहा था।उन्होंने इस दर्द का प्रदर्शन कर तालिया नही बटोरी बल्कि वंचित बस्तियों के बीच जाकर उनके दर्द को सांझा किया।सावरकर वो थे जिन्होंने हिन्दू समाज को ‘मोपला’ और गोमांतक नाम का उपन्यास लिख कर दिया जिसमें हमारे समाज के तमाम दुखो का निवारण है।

अगर माफीनामा लिखा भी है तो उस माफीनामे को सोने के फ्रेम में मढ़वाएँगे हम

लेखक अभिजीत सिंह लिखते है कि न तो बाली का छिपकर वध करने वाले प्रभु श्री राम हमारे लिए कायर है न ही रणभूमि से भागने वाले रणछोड़ भगवान श्री कृष्ण हमारे लिए कायर है।देश,काल और परिस्थिति के अनुरूप धर्मरक्षण व राष्ट्ररक्षण के लिए उठाए गए कदमो को हमारे धर्म ग्रंथो ने मान्यता दी है और उन्हें भी धर्म की श्रेणी में रखते हुए “आपद धर्म” कहा है।हमारे पूर्वजों व श्रेष्ठ पुरुषों ने समयानुकूल इस आपदधर्म का पालन भी किया है।

भले ही सावरकर ने अंग्रेजो से माफी मांगी होंगी या भरा होगा कोई माफीनामा,हमे उससे कोई फर्क नही पड़ना चाहिए।अगर वैसा कोई कथित माफीनामा है भी तो विनायक का वह माफीनामा आज राष्ट्र के लिए संजीवनी बन गया है।
विनायक अगर कारागृह से बाहर नही आते तो आज हम उस स्वाभिमान के साथ खड़े नही होते जिस के साथ खड़े है।आज अगर करोड़ो सीने में भारत माँ के मान एवम अभिमान का दीपक प्रज्ज्वलित है तो ये इसलिए है क्योंकि इसकी लौ उस महान आत्मा के ज्योतिपुंज से ही प्रदीप्त है।

सावरकर इसलिए पूज्य नही है की उनका नाम किसी किसी स्कूल की किताब या किसी जेल के शिलापट्ट पर लिखा है बल्कि सावरकर इसलिए पूज्य है क्योंकि उनका नाम हर देशभक्त के सीने में अंकित है और जहाँ तक उस कथित माफीनामे का सवाल है तो वो “कथित माफीनामा” है भी तो वो सोने के फ्रेम में मंडवाकर सहेज कर रखने लायक धरोहर है,शर्मिन्दा होने का कारण नही।

Share on facebook
Share on twitter
Share on whatsapp