ऑपरेशन ब्लू स्टार की 37वी बरसी पर स्वर्ण मंदिर में पहराये गए भिंडरावाले के पोस्टर ,जानिए क्या है ऑपरेशन ब्लूस्टार का पूरा सच

ऑपरेशन ब्लू स्टार की 37वी बरसी पर स्वर्ण मंदिर में पहराये गए भिंडरावाले के पोस्टर
ऑपरेशन ब्लू स्टार को आज 37 वर्ष पूरे हो गए।पंजाब स्थित स्वर्ण मंदिर में आयोजित एक कार्यक्रम में भिंडरावाले के पोस्टर और खालिस्तान के झंडे दिखाए गए।

ऑपरेशन ब्लू स्टार को आज 37 वर्ष पूरे हो गए।पंजाब स्थित स्वर्ण मंदिर में आयोजित एक कार्यक्रम में भिंडरावाले के पोस्टर और खालिस्तान के झंडे दिखाए गए।
पंजाब में एक बार फिर खालिस्तानी विचार उभर रहा है।वर्ष 1984 में श्री हरमिंदर साहिब गुरुद्वारा (Golden Temple) में इकट्ठे हुए खलिस्तानी आतंकियों के सफाए के लिए चलाए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर आयोजित एक कार्यक्रम में खालिस्तान समर्थक आतंकी जनरैल भिंडरावाले के पोस्टर व खालिस्तान का झंडा नजर आया।देश की एकता व सुरक्षा को देखते हुए खालिस्तानी विचार का पुनः उभरना एक बड़े खतरे की आहट है और डर है कि कही पंजाब पुनः अलगाववाद की आग में न जल उठे।

क्या है ऑपरेशन ब्लू स्टार का सच

ऑपरेशन ब्लू स्टार एक ऐसी कड़वी सच्चाई है जिसे स्वीकार कर पाना बड़ा ही कठिन है।ये देश के लिए पहला मौका था जब देश की सेना को अपने ही देश के नागरिकों पर कार्यवाही के लिए बाध्य होना पड़ा था।
ये एक ऐसी घटना थी जिसने पूरे देश को झझकोर कर रख दिया था।जनरैल भिंडरवाला की मौत के साथ ही ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म हो गया था लेकिन इसकी कीमत देश को अपनी प्रधानमंत्री श्री मति इंदिरा गांधी की मौत से चुकानी पड़ी थी।

आखिर क्यों सुलगा था पंजाब में अलगाववाद

ऑपरेशन ब्लू स्टार की तह तक जाने के लिए हमे जाना पड़ेगा इतिहास के उस दौर में जब देश आजाद हुआ था।पंजाब में अलगाववाद की आग सुलगना शुरू जब देश की आजादी के बाद देश को बंटवारे का दंश झेलना पड़ा था।इस बंटवारे में पंजाब के भी दो हिस्से हो गए थे।बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया था।

बंटवारे के दौरान हुए खून खराबे में बड़ी संख्या में पाकिस्तान के हिस्से में आये पंजाब व अन्य प्रांतों से बड़ी संख्या में हिन्दू,सिख व सिंधी लोग भारत आये थे।पंजाबियों को अपनी संस्कृति और भाषा के वजूद की चिंता सताने लगी।
आजादी के बाद ही शुरू हो गई थी सिखों के लिए अलग राज्य की मांग

अंग्रेजो के ही काल मे वर्ष 1920 में ही सिखों की धार्मिक संस्था की ही राजनैतिक शाखा के रूप में अकाली दल का गठन हो चुका था।आजादी के बाद जब भाषा के आधार पर राज्यो का पुनर्गठन हुआ तो सिख बाहुल्य राज्य बनाने की मांग भी की गई परन्तु उसे तब दरकिनार कर दिया गया।

यह वह दौर था जब पंजाब में मौजूदा पंजाब,हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और राजधानी दिल्ली भी आती थी।यहां सिखों की आबादी हिन्दुओ की तुलना में कम थी।सिख चाहते थे कि पंजाब के संसाधनों पर पहला हक पंजाबियों यानी सिखों को मिले।
1956 में हिमाचल प्रदेश को तो अलग से केंद्रशासित प्रदेश घोषित कर दिया गया परन्तु पंजाब को अलग राज्य बनाये जाने में सरकार को 10 साल का समय और लग गया।

अकाली दल द्वारा पंजाब के गठन के लिए भाषा को आधार बनाया गया था और सरकार द्वारा इस प्रस्ताव को मान लिया गया।वर्ष 1965 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद पंजाब व हरियाणा का गठन हुआ।

पंजाब के गठन के बाद बहुत से प्रवासी विदेश गए तथा वही से खालिस्तान का विचार पनपा।कनाडा,अमेरिका तथा ब्रिटेन गए पंजाबियों ने 1970 में खालिस्तान आंदोलन शुरू कर दिया और जगजीत सिंह चौहान जैसे नेताओं द्वारा विदेशी धरती से ही खालिस्तान के अलग देश के रूप में गठन का एलान कर दिया गया तथा वही पर अलग मुद्रा भी जारी कर दी गई।
अकाली दल ने अलग से खालिस्तान की मांग नही की थी वह सिर्फ स्वायत्तता चाहता था जिसमे राज्यो को ज्यादा अधिकार मिले।

1973 का आनंदपुर साहिब प्रस्ताव क्या था

सन 1973 में आनंदपुर साहिब में एक बैठक का आयोजन किया गया था जिसमे राजनैतिक,आर्थिक व सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते हुए कुछ प्रस्ताव पारित किए गए। अकाली दल ने प्रस्ताव रखा था कि सिख समुदाय की पहचान,वजूद व संस्कृति को बचाये रखने के लिए केंद्र को राज्य सरकार के कामो में ज्यादा हस्तक्षेप नही करना चाहिए। केंद्र सरकार को राज्यो को ज्यादा स्वायत्तता देते हुए राज्यो को पूरी ताकत देनी चाहिए।

अकाली दल द्वारा पारित किए गए प्रस्ताव में सात बाते महत्वपूर्ण थी-

1973 में पारित हुए इन प्रस्तावों को हर किसी ने भुला दिया था परंतु भिंडरवाला के उदय ने इन्हें फिर से हवा दी।जनरैल भिंडरवाला को 1977 में सिखों के धर्मप्रचार की प्रमुख शाखा दमदमी टकसाल का मुखिया नियुक्त किया गया था।उस समय तक दमदमी टकसाल का निरंकारियों से टकराव शुरू हो चुका था।
पारंपरिक रूप से सिखों का मानना है कि गुरुग्रंथ साहिब 11वे व अंतिम गुरु है और वे ही अनंत काल तक रहेंगे व गुरु गोविंद सिंह के बाद कोई भी व्यक्ति इस पद को ग्रहण नही कर सकता लेकिन इस विचार का निरंकारी समर्थन नही करते है।

1978 में वैशाखी के दिन निरंकारियों व सिखों के बीच हुई झड़प में 13 निरंकारियों की जान चली गई और यहां से जली ये चिंगारी धीरे धीरे दावानल का रूप ले गई जिसमे घी डालने का काम तत्कालीन कांग्रेस ने किया। 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा देश मे आपातकाल लगाया गया जो 1977 रहा।इसके बाद हुए चुनावो में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा देश मे जनता पार्टी की सरकार बनी।पंजाब में भी सत्ता कांग्रेस के हाथ से छूटकर अकाली दल के हाथ आ गई और सत्ता में आने के बाद अकालियों का प्रभाव पंजाब में बढ़ने लगा।

अकालियों की काट के लिए भिंडरावाले को बनाया कांग्रेस ने राजनैतिक हथियार

पंजाब में अकालियों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए कांग्रेस ने एक दाव खेला और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह की सलाह पर इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने एक ऐसे नेता को ढूंढना प्रारम्भ किया जो सिखों को अकाली की तरफ जाने से रोके व ‘

अपने समर्थको के साथ स्वर्ण मंदिर में भिंडरेवाला
अपने समर्थको के साथ स्वर्ण मंदिर में भिंडरेवाला

कांग्रेस की तरफ ले आये और ऐसे में उन्हें वह व्यक्ति मिला भिंडरावाले। कांग्रेस ने भिंडरावाले को पंजाब की धार्मिक राजनीति में बढ़ावा देने के लिए हर तरह की मदद की।
भिंडरावाले ने गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े करना शुरू किए जिन्हें कांग्रेस समर्थन देती रही।कांग्रेस ने भिंडरावाले की पंजाब एवम सिखों के बीच मजबूती से पैर जमाने पूरी मदद की। जनतापार्टी की सरकार गिरने के बाद राज्य में हुए चुनाव में पुनः कांग्रेस की सरकार बनी एवम दरबारा सिंह मुख्यमंत्री बने।दरबारा सिंह ने कांग्रेस नेतृत्व से भिंडरवाला का रोकने के लिए अनुरोध किया परन्तु कांग्रेस नेतृव इसके पक्ष में नही था।

भिंडरेवाला समर्थको का आतंक

पंजाब में भिंडरेवाला के समर्थकों का आतंक अब बढ़ने लगा और काँग्रेस नेतृत्व के समर्थन के कारण उसका प्रभाव भी बढ़ रहा था तथा सत्ता का संरक्षण भी उसे प्राप्त था। भिंडरेवाला एवम उसके समर्थकों ने वर्ष 1980 में निरंकारी बाबा गुरवचन सिंह की हत्या कर दी।

1981 में भाषा का मुद्दा जनगणना के दौरान अहम हो गया।हिंदी के आगे पंजाबी के पिछड़ने का डर अब सिखों को लगने लगा।ऐसे में पंजाब केसरी अखबार ने अपने लेखों में पंजाब में रहने वाले हिन्दुओ से अपील की कि वे जनगणना के दौरान अपनी भाषा हिंदी को बताए। हिंदी -पंजाबी के इस विवाद में पंजाब केसरी के मालिक लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई। हत्या के आरोप में भिंडरेवाला की गिरफ्तारी की गई परंतु राज्य में गिरफ्तारी के विरोध में हिंसा शुरू हो गई और इस कारण कुछ दिन भिंडरेवाला को छोड़ दिया गया।जेल से छूटने के बाद उसके अनुयायियों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होने लगी।

1982 में अकाली और भिंडरेवाला आए साथ

1982 में भिंडरेवाला और अकाली दल साथ काम करने को राजी हो गए।अकाली दल के संत हरचंद सिंह लोंगेवाल व जनरैल सिंह भिंडरेवाला की सहमति से धर्मयुद्ध मोर्चे की स्थापना हुई।इसका मुख्य उद्देश्य 1973 के आंनदपुर साहिब के प्रस्ताव की मांगों को पूरा करवाना था।
अब भिंडरेवाला कांग्रेस के हाथों से निकल चुका था तो कांग्रेस सरकार द्वारा इस आंदोलन को रोकने की कोशिशें की गई।इस संघर्ष में तकरीबन 100 लोगो की जान गई तथा 30000 से ज्यादा लोगो को गिरफ्तार किया गया।
1983 में धर्मयुद्ध मोर्चा के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने वाले पुलिस अधिकारी ए एस अटवाल की स्वर्ण मंदिर के बाहर हत्या कर दी गई।

1983 में पंजाब में राष्ट्रपति शाषन लगा दिया गया

ये वो दौरे था जब पंजाब में हिन्दू व सिखों में संघर्ष शुरू हो चुका था।हिन्दुओ के घरों पर हमला कर हत्याएं की जाने लगी।मंदिरों का ध्वंस किये जाने लगा।मंदिरों के अंदर गौधन की हत्या कर उसके मांस के टुकड़े फेंक दिए जाते थे।अक्टूबर 1983 को एक बस में सवार 6 हिन्दुओ की हत्या कर दी गई।पंजाब को हाथ से जाता देख इंदिरा गांधी द्वारा पंजाब की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया तथा राष्ट्रपति शाषन लगा दिया गया।

भिंडरावाले ने अकाल तख्त पर कब्जा किया

भिंडरेवाला व उसके समर्थकों द्वारा हरमिंदर साहिब के अंदर हथियार इकट्ठे करना शुरु कर दिया गया।15 दिसम्बर 1983 को भिंडरेवाला ने अपने समर्थकों के साथ अकाल तख्त पर कब्जा कर दिया।
इसके बाद इंदिरा गांधी ने भिंडरेवाला के सामने बातचीत का प्रस्ताव रखा जिसे अकाली दल ने तो मान लिया लेकिन भिंडरेवाला ने खारिज कर दिया।

1 जून को पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया

हिन्दुओ व सिखों के बीच बढ़ते संघर्ष को देखकर 1 जून 1984 को पूरे पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया।इससे पहले हुए संघर्षों में लगभग 300 लोगो की जान जा चुकी थी।भारत सरकार द्वारा पंजाब में आने जाने पर पाबंदी लगा दी।रेल,वायु और सड़क मार्ग बंद कर दिए गए तथा पत्रकारों को भी अमृतसर छोड़ने का आदेश दे दिया गया। सेना व अर्ध सैनिक बलो द्वारा सारा नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया गया।

  3 जून को शहीदी दिवस के मौके पर अन्य दिनों को अपेक्षा ज्यादा श्रद्धालु स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने आये हुए थे।पुलिस व प्रशासन द्वारा लोगो से वापिस लौटने के लिए कहा गया परन्तु भिंडरेवाला व उसके समर्थकों ने श्रद्धालुओं को बाहर नही निकलने दिया गया। 

भिंडरेवाला के समर्थको को हथियार चलाने व सैन्य बलों का सामना करने का प्रशिक्षण मेजर जनरल शाहबेग सिंह ने दिया था जो बांग्लादेश की मुक्तिवाहिनी के लिए पाकिस्तानी सेना का सामना करने का प्रशिक्षण दे चुके थे।अपने इसी अनुभव का उपयोग उन्होंने भिंडरेवाला के समर्थकों को प्रशिक्षित करने में किया।

ऑपरेशन ब्लूस्टार की कमान कुलदीप सिंह बरार के हाथों सौंपी गई

मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार के हाथों में ऑपरेशन ब्लूस्टार की कमान सौंपी गई।5 जून की शाम दोनो पक्ष आमने सामने हो गए थे।सेना को निर्देश दिया गया था कि हरमिंदर साहब को किसी तरह की क्षति नही पहुचनी चाहिए।सेना को इस बात का अंदाजा नही था कि इन खालिस्तानी आतंकियों के पास आधुनिक हथियार है।आतंकियों के पास एन्टी टैंक गन,रॉकेट लॉन्चर व मशीन गन थी तथा वे सही जगह पर घात लगाए बैठे थे।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान स्वर्ण मंदिर में मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार (मध्य में )

शुरुआत में जब ज्यादा सैनिक मरने व घायल होने लगे तो मेजर बरार ने अकाल तख्त पर हमला करने के लिए टैंक मंगा लिए।इन टैंकों का उपयोग रात में रोशनी करके भिंडरेवाला व उसके समर्थकों का पता लगाना व निशाना लगाना था परंतु जब इससे भी बात नही बनी तो फिर अकाल तख्त पर टैंक से गोले दागे गए।लगभग 80 से ज्यादा गोले अकाल तख्त पर टैंकों द्वारा दागे गए थे जिसमें भिंडरेवाला की मौत हो गई।इस ऑपरेशन में स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्से भी क्षतिग्रस्त हो गए थे।

सेना के 83 जवान हुए शहीद

हमले के दौरान सेना के 83 जवान बलिदान हुए थे तथा 248 जवान घायल हुए थे।इस ऑपरेशन में लगभग 500 आतंकी मारे गए थे जिसमें भिंडरेवाला भी शामिल था। मिशन पूरा होने के बाद जब स्वर्ण मंदिर की जांच हुई थी तो वहां बड़ी मात्रा में हथियार बरामद हुए थे। इस ऑपरेशन के बाद भी पंजाब में शांति स्थापित नही हो पाई थी और इसके लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार का दूसरा चरण चलाया गया था। उसी वर्ष अक्टूबर में इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई और एक बार फिर सिख विरोधी दंगे भड़क उठे। दिल्ली में 3000 से ज्यादा सिखों को मार दिया गया।1985 में जनरल वैध की पुणे में हत्या कर दी गई।

हमले के दौरान सेना के 83 जवान बलिदान हुए थे तथा 248 जवान घायल हुए थे।
हमले के दौरान सेना के 83 जवान बलिदान हुए थे तथा 248 जवान घायल हुए थे।

इंग्लैंड में ऑपरेशन ब्लूस्टार की कमान संभालने वाले कुलदीप सिंह बराड़ की गला रेत कर हत्या की कोशिश की गई।पंजाब में आतंक की आग और ज्यादा भड़क उठी थी ऐसे में पंजाब की कमान केपीएस गिल को सौंपी गई और उनकी अगुवाई में पंजाब ने लगभग 10 वर्षो में जाकर इस संघर्ष एवम आतंक से मुक्ति पाई।

ऑपरेशन ब्लूस्टार ऐसा पहला मामला था जिसमे सेना ने अपने ही देश के नागरिकों के खिलाफ युद्ध किया था।पंजाब का वह संघर्ष एवम आतंक का दौर एक काला अध्याय बन चुका है परंतु अभी कुछ दिनों से खालिस्तान की मांग फिर से सर उठाने लगी है।

26 जनबरी 2021 को दिल्ली के लालकिले पर खलिस्तानी आतंकियों द्वारा किसान बिल के विरोध के बहाने से देश को शर्मसार करने वाली घटना हम सबने देखी है। देश मे चल रहे किसान आंदोलन में भी बार बार खलिस्तान एवम भिंडरेवाला का नाम सामने आता रहा है और अब आज स्वर्ण मंदिर में एक बार फिर भिंडरेवाला के पोस्टर एवम खलिस्तानी झंडों को दिखना खतरे की घण्टी है जिसे तुरंत नही रोका गया तो भविष्य में एक बार फिर संघर्ष की आग लगेगी इस संभावना से इनकार नही किया जा सकता है।

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