केन्या की 12 टन खाद्यान्न की अनमोल सहायता का मजाक बनाना कितना जायज

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पूर्वी अफ्रीका के देश केन्या ने कोविड-19 की राहत सहायता के तौर पर भारत को 12 टन खाद्य उत्पाद दान किये है जिसे लेकर विपक्ष व कुछ अन्य लोग मजाक का विषय बना रहे है,यह कितना जायज है? शुक्रवार को पूर्वी अफ्रीकी देश इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी को 12 टन चाय,कॉफी व मूंगफली भेजी है जिनका उत्पादन स्थानीय तौर पर किया गया था। भारत मे केन्या के उच्चायुक्त विली बेट ने कहा ,”केन्या सरकार खाद्य पदार्थ दान देकर कोविड-19 महामारी के दौर में भारत सरकार व उसके लोगो के साथ एकजुटता दिखाना चाहती है।”

महाराष्ट्र में बांटे जाएंगे ये खाद्यान्न पैकेट

केन्या में ही उत्पादित इन खाद्य पदार्थो के पैकेट्स को महाराष्ट्र में बांटा जाएगा।
यह खाद्य सामग्री देने के लिए दिल्ली से मुम्बई आये ब्रेट ने बताया कि यह दान अग्रिम मोर्चे पर काम करने वाले लोगो को दिए जाने के लिए है,जो लोगो की जान बचाने के लिए घण्टो काम कर रहे है।

कांग्रेस ने उड़ाया मजाक

कांग्रेस ने केन्या द्वारा दिये गए इस दान का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया और केंद्र सरकार पर निशाना साधा।
कांग्रेस सेवादल ने ट्वीट करते हुए लिखा कि केन्या ने भारत को दान किया 12 टन अनाज।विदेशों से मदद न लेने का मनमोहन जी का फैसला बदला।

 

 

कांग्रेस की हरियाणा से विधायक किरण चौधरी ने लिखा कि केन्या ने कोविड-19 रिलीफ के तहत 12 टन फ़ूड प्रोडक्ट्स दान किये।देश की मंडियों में अनाज सड़ रहा है और साहब विदेशों से चंदा मांग कर अन्नदाताओं का अपमान कर रहा है। बजा दिया विदेशों में डंका।

विपक्ष को सरकार की आलोचना व सवाल करने का पूर्ण अधिकार है परंतु उसके बहाने किसी देश द्वारा की जा रही मदद का मजाक उड़ाना क्या समझदारी कही जा सकती है?आपको जान लेना चाहिए कि केन्या से मदद मांगी नही गई थी बल्कि उन्होंने स्वम् से ये सहायता भारत भेजी है।

अमेरिका को 12 गाय देकर मदद की थी केन्या ने

आज 12 टन खाद्य पदार्थो पर भारत व केन्या का उपहास कर रहे लोगो को ये सच्ची घटना अवश्य पढ़नी चाहिए-
अमेरिका,मैनहैटन,वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और ओसामा बिन लादेन ये सभी नाम आप ने सुने होंगे।अमेरिका पर हुए 9/11 के हमलों के बारे में भी ज्यादातर लोगों को पता ही होगा परंतु एक गांव है जिसका नाम “इनोसाइन गांव” इस गांव का नाम आपने नही सुना होगा।
ये कहानी जुड़ी है इसी इनोसाइन गांव से जो कि तंजानिया और केन्या के बॉर्डर पर बसा हुआ एक छोटा सा गांव है।यहां एक जनजाति निवास करती है जिसका नाम है मसाई।

अमेरिका पर जब 9/11 का हमला हुआ था तो पूरे विश्व मे हड़कंप मच गया था लेकिन संचार साधनों के अभाव व अपनी सामान्य जीवन शैली के चलते मसाई लोगो तक यह खबर पहुचने में कई महीने लग गये।यह खबर उन तक पहुँची जब गांव के पास ही कस्बे में रहने वाली स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई कर रही स्टूडेंट किमेली नाओमा छुट्टियों में वापिस केन्या आई और उसने वहां के लोगो को इस घटना का आंखों देखा हाल सुनाया।

कोई बिल्डिंग इतनी भी ऊंची हो सकती है कि वहां से गिरने पर जान चली जाए,छोटी छोटी झोपड़ियों में रहने वाले मसाई जनजाति के लोगो के लिए ये बात अविश्वसनीय थी परंतु उन लोगो ने अमेरिका के दुख को महसूस किया।उन्होंने उसी स्टूडेंट के माध्यम से केन्या की राजधानी नैरोबी में अमेरिकी दूतावास के डिप्टी चीफ विलियम ब्रान्गिक को पत्र भिजवाया जिसे पढ़ने के बाद विलियम ब्रांगिक पहले हवाई जहाज का सफर किया,उसके बाद कई मील तक टूटी फूटी सड़क पर कठिनाई का रास्ता पार कर मसाई जनजाति के गांव पहुँचे।

गांव पहुचने पर मसाई जनजाति के लोग इकट्ठा हुए और एक कतार में 14 गाये लेकर अमेरिकी दूतावास के अधिकारी के पास पहुँचे।मसाइयो के एक बुजुर्ग ने गायों से बंधी रस्सी डिप्टी चीफ के हाथों पकड़ाते हुए एक तख्ती की तरफ इशारा किया।जानते है उस तख्ती पर क्या लिखा था?

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अमेरिकी राजदूत को गाय भेट करते हुए मसाई जनजाति के लोग

उस तख्ती पर लिखा था-इस दुख की घड़ी में अमेरिका के लोगो की मदद के लिए हम ये गाये उन्हें दान कर रहे है।
एक बार सोचिये एक पत्र को पढ़कर दुनिया के सबसे ताकतवर व समृद्ध देश का राजदूत सैकड़ो मील चल कर उन गायों का दान लेने आया था।

गायों के ट्रांसपोर्ट की कठिनाई और कानूनी बाध्यता के कारण गायों को बेचकर उनकी जगह एक मसाई आभूषण खरीद कर 9/11 मेमोरियल म्यूजियम में रखने की पेशकश की गई।जब ये बात अमेरिका के नागरिकों को पता चली तो उन्होंने मजाक नही उड़ाया,पता है उन्होंने क्या किया?
उन्होंने आभूषण की जगह गाय लेने की जिद कर दी।
ऑनलाइन पिटीशन साइन किये गए,अधिकारियों से लेकर नेताओ तक को ईमेल लिखे गए कि उन्हें आभूषण नही गाय ही चाहिए।
करोड़ो अमेरिकी निवासियों ने मसाई जनजाति व केन्या के लोगो को इस अभुतपूर्व प्रेम के लिए कृतज्ञ भाव से धन्यवाद दिया।

 

इस कहानी को लिखने का मकसद यही है कि हमारा यह भाव कहा खो गया है? केन्या के लोग भले ही गरीब हो,मसाई लोग आज भी भौतिक सुख सुविधाओं से दूर है,तन पर कपड़े नही है,जंगलों में रहते है परंतु उनका हृदय अमीर है।धन व भौतिक सुख सुविद्याए कमाने से ज्यादा इस भाव का आना महत्वपूर्ण है कि हम समाज व विश्व के लिए किस प्रकार काम आ सकते है।

12 टन दान को सहर्ष स्वीकार कीजिये और केन्या के नागरिकों को धन्यवाद दीजिए की इस विपदा की घड़ी में वे आकर हमारे साथ खड़े हुए है।

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