30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है।इसके पीछे की कहानी जानने के लिए हमे जाना पड़ेगा 1826 में जब देश मे अंग्रेजो का राज हुआ करता था।ये वो समय था जब देश मे अंग्रेजो की ताकत बहुत बढ़ चुकी थी और ज्यादातर राजा महाराजा व नवाब अंग्रेजो के साथ समझौता कर चुके थे।
हिंदी में नही था कोई भी अखबार
कलकत्ता उस समय अंग्रेजो की राजधानी हुआ करता था।परतंत्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रेजी, बांग्ला व उर्दू का प्रभाव था।उस समय देश मे अंग्रेजी,बांग्ला व फारसी में तो कोई अखबार निकलते थे परंतु हिंदी भाषा मे एक भी अखबार प्रकाशित नही होता था। हालांकि 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बंगला समाचार पत्र “समाचार दर्पण” में कुछ हिस्से हिंदी के होते थे परंतु पूर्ण हिंदी अखबार का अभाव था।
हिंदी पत्रकारिता के पितामह पंडित जुगल किशोर शुक्ल
हिंदी पत्रकारिता के पितामह कहे जाने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने ही सर्वप्रथम हिंदी अखबार की शुरुआत की थी। 17 मई,1788 को कानपुर में श्री जुगल किशोर शुक्ल का जन्म हुआ था।वे ईस्ट इंडिया कम्पनी में नौकरी के सिलसिले में कलकत्ता गए थे और वही उनका परिचय राजा राममोहन राय से हुआ था।
कलकत्ता से हुई शुरुआत
पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता के कालू टोला मोहल्ले की 27 नंबर आमडतल्ला गली से हिंदी के प्रथम साप्ताहिक अखबार उदंत मार्तण्ड के प्रकाशन की शुरुआत की।प्रशासन से अनुमति के लिए प्रयास करने के बाद गवर्नर जनरल की ओर से उन्हें 19 फरबरी 1826 को इसकी अनुमति मिली।
आर्थिक तंगी बनी समस्या
इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की केवल 500 प्रतियां छापी गई थी।कलकत्ता जैसे शहर में हिंदी भाषी लोगो की कमी थी इसलिए अखबार को ज्यादा पाठक नही मिल पाए।पंडित जुगल किशोर शुक्ल द्वारा अखबार को डाक सेवा द्वारा हिंदी भाषी क्षेत्रो में भेजा जाने लगा परन्तु यह महंगा पड़ रहा था।पंडित जुगल किशोर जी द्वारा सरकार से अनुरोध किया गया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दे परन्तु ब्रिटिश सरकार इसके लिए तैयार नही हुई।
मात्र डेढ़ साल में करना पड़ा प्रकाशन बंद
यह समाचार पत्र चूंकि पुस्तक के प्रारूप में हर मंगलवार को छपता था।अपनी शुरुआत से लेकर अब तक इसके केवल 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए थे और 30 मई 1826 को शुरू हुआ यह अखबार अपनी आर्थिक तंगियो के चलते 4 दिसम्बर 1827 को बंद हो गया।इतिहासकार कहते है कि कंपनी सरकार ने मिशनरियों के पत्र को तो डाक आदि की सुविधा दी थी,परन्तु उदंत मार्तण्ड यह सुविधा नही मिली और उसका कारण अख़बार का बेबाक वर्ताव था।
हिंदी पत्रकारिता का वर्तमान
आज से 195 साल पहले 30 मई को शुरू होने वाली हिंदी पत्रकारिता की वह लौ आज यज्ञस्वरूप बन चुकी है।इन 195 सालो में हिंदी पत्रकारिता ने देश को कई गौरवशाली व यादगार दिन दिए है और भारतीय लोकतंत्र में अपना विशेष स्थान बनाया है।
प्रिंट पत्रकारिता से शुरू हुआ ये सफर आज डिजिटल मीडिया तक पहुचा है एवम पत्रकारिता का सम्मान व स्थान बढ़ा है।हिंदी चैनल्स व पत्र पत्रिकाओं ने आज अपनी सफलताओं के ऊंचे आयाम स्थापित किये है।
ये हिंदी पत्रकारिता का सौभाग्य ही है कि देश के एक प्रतिष्ठित पत्रकार रविश कुमार को रमन मैग्ससे अवार्ड मिलता है वही दूसरे पत्रकार रोहित सरदाना की मृत्यु पर देश में संवेदनाओं का ज्वार उमड़ पड़ता है।